15x15 फीट के कमरे को बनाया प्रयोगशाला
2018 में दोनों भाइयों ने अपने घर की छत पर 15x15 फीट के कमरे को एक छोटी प्रयोगशाला में बदल दिया। यहां उन्होंने एरोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करके केसर उगाना शुरू किया। एरोपोनिक्स एक ऐसी तकनीक है जिसमें पौधे बिना मिट्टी या पानी के, हवा में लटके हुए उगते हैं। उन्होंने इस सेटअप में लगभग 6 लाख रुपये का निवेश किया। इसमें ग्रो लाइट्स, ह्यूमिडिफायर, तापमान नियंत्रण के लिए चिलर और केसर के बल्ब रखने के लिए लकड़ी की ट्रे शामिल थीं।
ऐसे आया आइडिया
प्रवीण सिंधु को यह आइडिया तब आया जब वह MTech की पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने अखबार में घर के अंदर केसर उगाने के बारे में पढ़ा था। उन्होंने अपने भाई नवीन को इस बारे में बताया, जो उस समय ब्रिटेन में एक होटल में काम कर रहे थे। 2016 में प्रवीण की पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों भाइयों ने मिलकर यह अनोखा काम शुरू करने का फैसला किया। प्रवीण थाईलैंड गए और वहां उन्होंने कॉर्डिसेप्स मशरूम उगाने की ट्रेनिंग ली। यह मशरूम अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। इस दौरान, नवीन केसर की खेती सीखने के लिए जम्मू-कश्मीर के पंपोर चले गए। पंपोर केसर की खेती का केंद्र है। यहां भारत का लगभग 90% केसर उगाया जाता है। उन्होंने वहां के किसानों से केसर उगाने की बारीकियां सीखीं। अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय का भी दौरा किया।
शुरुआत में मिली असफलता
शुरुआत में प्रवीण और नवीन को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने सबसे पहले कश्मीर से 100 किलो केसर के बल्ब ऑनलाइन मंगवाए थे। लेकिन, वे खराब हालत में पहुंचे। इस असफलता से सीखते हुए अगले साल उन्होंने खुद पंपोर जाकर बल्ब खरीदे। 2019 में उन्होंने 100 किलो बल्ब खरीदे और उन्हें उगाने में सफलता मिली। भाइयों ने अपने परिवार और दोस्तों को यह केसर तोहफे में दी। इससे उत्साहित होकर उन्होंने अगले सीजन में बिचौलियों को दरकिनार करते हुए सीधे 700 किलो बल्ब खरीदे। इससेउन्हें सस्ती दर पर बल्ब मिल गए। उस फसल से उन्हें 500 ग्राम केसर मिला, जिसे उन्होंने 2.5 लाख रुपये में बेचा। 2023 में उनकी छोटी सी प्रयोगशाला में 2 किलो केसर की पैदावार हुई। इससे उन्हें 10 लाख रुपये की कमाई हुई।
विदेश में करते हैं निर्यात
सिंधु भाई अब अपने ब्रांड 'अमर्त्व' के तहत अमेरिका, ब्रिटेन और घरेलू बाजार में केसर बेचते और निर्यात करते हैं। अपनी सालाना कमाई बढ़ाने के लिए वे ऑफ-सीजन के दौरान प्रयोगशाला में कॉर्डिसेप्स या बटन मशरूम उगाने की योजना बना रहे हैं। केसर के बल्ब अगस्त के मध्य में प्रयोगशाला में लगाए जाते हैं। नवंबर के मध्य में इनमें फूल खिलने लगते हैं। वे हाथ से फूलों से केसर के धागे अलग करते हैं। फसल कटने के बाद बचे हुए फूलों की पंखुड़ियों को कॉस्मेटिक कंपनियों को बेच दिया जाता है। इससे उन्हें अतिरिक्त आय होती है। कटाई के बाद बल्बों को वापस मिट्टी में लगा दिया जाता है ताकि वे मल्टीप्लाई हो सकें। इससे उन्हें बार-बार बल्ब खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती।
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